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पूर्वोत्तर भारत में कोरोना आपदा को अवसर में परिवर्तित करती विद्या भारती

डाॅ. पवन तिवारीसह संगठन मंत्रीविद्या भारती पूर्वोत्तर क्षेत्र स्वामी विवेकानन्द के विचारों में बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का बहिरागमन ही शिक्षा है। वे कहते थे कि शिक्षा मनुष्य को साहसी बनाती है, जिससे वह किसी भी कार्य को आसानी से करने हेतु सन्नद्ध हो जाता है। वस्तुतः उत्कृष्ट शिक्षा को प्राप्त करना प्रत्येक बालक का […]

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तैयारी परीक्षा की…भावी जीवन की

 – दिलीप बेतकेकर “नमस्कार विद्यार्थी मित्रों, कैसी चल रही है तैयारी?” आपके पास पढ़ने के लिये शुरूआत करने के दिन से कितने दिन पहले यह प्रश्न पूछा जाना ठीक होगा? देखा जाये तो कितने भी दिन बहुत कम अर्थात पर्याप्त नहीं भी हैं और हो सकता है पर्याप्त हों भी! इतने दिनों की अवधि में […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-26 – (व्यक्ति, व्यक्तित्व और विकास)

– वासुदेव प्रजापति आजकल “व्यक्तित्व विकास” शब्द अत्यधिक प्रचलित है। अनेक व्यक्ति व संस्थान व्यक्तित्व विकास शब्द के स्थान पर “पर्सनेलिटी डेवलपमेंट” शब्द का प्रयोग करते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि ये दोनों शब्द समान अर्थ वाले हैं। पर्सनेलिटी डेवलपमेंट शब्द का प्रयोग करने में उन्हें गौरव की अनुभूति भी होती है। किन्तु […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-25 – (दूसरे वर्ष में प्रवेश)

 – वासुदेव प्रजापति “ज्ञान की बात” एक पाक्षिक स्तंभ है, जिसकी अब तक 24 कड़ियां आ चुकी हैं। अर्थात् इसे प्रारंभ हुए अब तक एक वर्ष की अवधि पूर्ण हो चुकी है। इस एक वर्ष की अवधि में हमने ज्ञान-अज्ञान को समझा। ज्ञानार्जन के साधनों कर्मेंद्रियां, ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार एवं चित्त को जाना। ज्ञानार्जन […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-24 – (दान)

 – वासुदेव प्रजापति भारतीय शिक्षा की एक प्रमुख विशेषता अर्थ-निरपेक्षता है। आज हमनें पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित होकर जीवन में अर्थ को सर्वोपरि मान लिया है। अर्थ की प्रमुखता होने से जीवन के सभी कार्य अर्थ सापेक्ष हो गये हैं। हमारे यहाँ धर्म, ज्ञान, सेवा व चिकित्सा को पैसों से श्रेष्ठ माना है। ये श्रेष्ठ […]

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पूर्वोत्तर भारत में हिन्दी की स्थिति एवं संभावनाएँ

ब्रह्माजी राव, अखिल भारतीय मंत्री एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र संगठन मंत्री विद्या भारती राष्ट्र संघ में कुल 252 देश हैं। इन देशों में प्रायः 700 करोड़ लोग रहते हैं। दुनिया में अत्यधिक संख्या में लोग मंडारिन (चीनी) भाषा में बात करते हैं। दूसरे स्थान पर अंग्रेजी, तीसरे स्थान पर स्पेनिश तथा चैथे स्थान पर हिन्दी है। […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-23 – भिक्षा (मधुकरी)

 – वासुदेव प्रजापति भिक्षा नाम सुनते ही हमारे मन में हेय भाव आता है। क्यों? इसलिए कि भिक्षा मांगने वाला बिना किसी मेहनत के और बिना किसी अधिकार के मुफ्त में कुछ प्राप्त करना चाहता है। मुफ्त में प्राप्त करने वाले को हम भिखारी कहते हैं। भिखारी का हमारे समाज में बहुत निम्न स्थान है। […]

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हाशिए पर खड़े परिवारों के घर में शिक्षा के दीप जलाती विद्या भारती

– योगेन्द्र भारद्वाज शोध अध्येता, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली सरस्वती विद्या मन्दिर का नाम सुनते ही हमारे मन-मस्तिष्क में सर्वसमावेशी, गुणवत्तापूर्ण और संस्कारित शिक्षा प्रदान करने वाले विद्यालय की परिकल्पना देदीप्यमान होती है। दसवीं-बारहवीं के परीक्षा परिणामों में राज्यीय बोर्डों में विद्या भारती से सम्बन्धित विद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा अपना परचम लहराते देखकर इसके […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-22 (गुरु दक्षिणा)

 – वासुदेव प्रजापति भारतीय शिक्षा व्यवस्था आज की शिक्षा व्यवस्था से अनेक बातों में श्रेष्ठ है। भारत में शिक्षा का विचार अर्थ के साथ जोड़कर नहीं किया गया। जबकि आज बिना अर्थ के शिक्षा का विचार ही नहीं होता। आज की शिक्षा व्यवस्था पूर्णतया अर्थ पर निर्भर है। भारत में शिक्षा सदैव से अर्थ निरपेक्ष […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-21 (शिक्षा की अर्थ निरपेक्ष व्यवस्था)

– वासुदेव प्रजापति आज देश के गाँव-गाँव तथा गली-गली में विद्यालय खुलते जा रहे हैं। क्यों? क्योंकि हमने शिक्षा को व्यवसाय बना लिया है। आज शिक्षा खरीदने-बेचने की वस्तु बना दी गई है और उसे धन कमाने का साधन मान लिया गया है। इसलिए उसका विचार ज्ञान के सन्दर्भ में न कर केवल पैसे के […]