– प्रो. रविन्द्र नाथ तिवारी
भाषा विचारों के आदान-प्रदान करने का सशक्त माध्यम है। किसी भी बच्चे की प्रथम शैक्षिक गुरु माता ही होती है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि छोटे बच्चे अपने घर की भाषा/मातृभाषा में सार्थक अवधारणाओं को अधिक तेजी से सीखते और समझते हैं। सामाजिक कल्याण और बौद्धिक नेतृत्व का गुण भी बच्चा सर्वप्रथम माता से शिक्षा के रूप में प्राप्त प्राप्त करता है। भागवत पुराण (4/8) में लेख हैं कि ध्रुव की माता सुनीति ने ध्रुव से कहा कि “मामंगलम् तात परेषु मंस्था” अर्थात् हे पुत्र ! जीवन में कभी भी किसी का अमंगल नहीं सोचना। हम भारतवासी उस गौरवशाली सनातन संस्कृति के संवाहक है, जहां प्रत्येक प्राणियों में सद्भावना और कल्याण की मंगलकामना जन-जन में अंतर्निहित है। निश्चित रूप से राष्ट्र के समग्र विकास के लिए मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा हेतु यथासंभव प्रयास होने चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में लेख है कि जहां तक संभव हो, कम से कम ग्रेड 5 तक लेकिन बेहतर यह होगा कि यह ग्रेड 8 और उससे आगे तक शिक्षा का माध्यम, घर की भाषा/मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके पश्चात घर/स्थानीय भाषा को जहां भी संभव हो: भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल इसका अनुपालन करेंगे। विज्ञान सहित समस्त विषयों में उच्चतर गुणवत्ता वाली पाठ्य-पुस्तकों को घरेलू भाषाओं/मातृभाषा में उपलब्ध कराया जाएगा। यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास शीघ्र किए जाएंगे कि बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा और शिक्षण के माध्यम के बीच ही यदि कोई अंतराल मौजूद हो तो उसे समाप्त किया जा सके। शिक्षकों को उन छात्रों के साथ जिनके घर की भाषा/मातृभाषा शिक्षा के माध्यम से भिन्न है, द्विभाषा एप्रोच का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
अनुसंधान दर्शाते हैं कि बच्चे 2 से 8 वर्ष की आयु के मध्य शीघ्रता से भाषण सीखते हैं तथा बहुभाषीकता से उस उम्र के विद्यार्थियों को बहुत अधिक संज्ञानात्मक लाभ होता है। फाऊंडेशनल स्टेज की शुरुआत और उसके बाद से ही बच्चों को विभिन्न भाषाओं में (मातृभाषा पर विशेष जोर देने के साथ) एक्सपोजर दिए जाएंगे। केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से देश भर की सभी क्षेत्रीय भाषाओं और विशेष रूप संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित सभी भाषाओं में पर्याप्त संख्या में भाषा शिक्षकों में निवेश एक बड़ा प्रयास होगा। राज्य, विशेष रूप से भारत के विभिन्न क्षेत्रों के राज्य अपने-अपने राज्यों में त्रिभाषा फार्मूले को अपनाने के लिए और साथ ही देश भर में भारतीय भाषाओं के अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षकों को नियुक्त करने के लिए आपस में द्विपक्षीय समझौते कर सकते हैं। विभिन्न भाषाओं को सीखने और भाषा शिक्षण को लोकप्रिय बनाने के लिए तकनीक का बृहद् उपयोग किया जाएगा।
संवैधानिक प्रावधानों, लोगों, क्षेत्रों और संघ की आकांक्षाओं, बहुभाषावाद और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, त्रिभाषा फार्मूले को लागू किया जाना जारी रहेगा हालांकि, तीन-भाषा के इस फार्मूले में काफी लचीलापन रखा जाएगा और किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाओं के विकल्प राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से छात्रों के स्वंय के होंगे, जिनमें कम से कम तीन में से दो भाषाएं, भारतीय भाषाएं होगी। भारत की भाषाएं दुनिया में सबसे समृद्ध, सबसे वैज्ञानिक, सबसे सुंदर और सबसे अधिक अभिव्यंजक भाषाओं में से हैं जिनमें प्राचीन और आधुनिक साहित्य (गद्य और कविता दोनों) के विशाल भंडार हैं। इन भाषा में लिखी गयी फिल्म, संगीत और साहित्य भारत की राष्ट्रीय पहचान और धरोहर है। सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकीकरण की दृष्टि से सभी युवा भारतीयों को अपने देश की भाषाओं के विशाल और समृद्ध भंडार तथा इनके साहित्य के समृद्धता के बारे में जागरूक होना चाहिए। भारत की शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य के महत्व, प्रसंगिकता और सुंदरता को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।
संस्कृत, संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित एक महत्वपूर्ण आधुनिक भाषा होते हुए भी, इसका शास्त्रीय साहित्य इतना विशाल है कि सारे लैटिन और ग्रीक साहित्य को भी यदि मिलाकर इसकी तुलना की जाए तो भी इसकी बराबरी नहीं की जा सकती है। संभवत: संस्कृत विश्व की अकेली भाषा है जहां तीनों रूप (एकवचन, द्विवचन, बहुवचन) पाए जाते हैं। संस्कृत साहित्य में गणित, दर्शन व्याकरण, संगीत, राजनीति, चिकित्सा, वास्तुकला, धातु विज्ञान, नाटक, कविता, कहानी और प्रचुरता में उपलब्ध है। संस्कृत को त्रिभाषा के मुख्यधारा के विकल्प के साथ, स्कूल और उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण, समृद्ध विकल्प के रूप में पेश किया जाएगा।
संस्कृत के अलावा भारत की अन्य शास्त्रीय भाषायें और साहित्य जिनमें तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम ओड़िया, पाली, फारसी और प्राकृत शामिल है, स्कूलों में भी व्यापक रूप से छात्रों के लिए विकल्प के रूप में संभवत: ऑनलाइन माड्यूल के रूप में अनुभवात्मक और अभिनव एप्रोच के माध्यम से उपलब्ध होंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये भाषा और साहित्य जीवित और जीवंत बनी रहें। देश के बच्चों के ज्ञान के संवर्धन के लिए और इन समृद्ध भाषाओं के संरक्षण के लिए, सार्वजनिक या निजी सभी स्कूलों में समस्त विद्यार्थियों के पास, भारत की शास्त्रीय भाषाओं और उससे जुड़े साहित्य को कम से कम 2 वर्ष सीखने का विकल्प होगा। भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में उच्चतर गुणवत्ता वाले पाठ्यक्रम के अलावा विदेशी भाषाएं जैसे कोरियाई, जापानी, थाई, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, पुर्तगाली और रूसी भी माध्यमिक स्तर पर व्यापक रूप से अध्ययन हेतु उपलब्ध करायी जायेगी ताकि विद्यार्थी विश्व संस्कृतियों के बारे में जान सकें।
भारतीय साइन लैंग्वेज (आईएसएल) को देश भर में मानकीकृत किया जाएगा तथा राष्ट्रीय और राज्य पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की जाएगी जो बधिर विद्यार्थियों हेतु उपयोग होगी। यह सच है कि अभी भी विद्यालयों में अप्रशिक्षित अध्यापकों की पर्याप्त संख्या विद्यमान है सरकार द्वारा इन्हें प्रशिक्षित करने हेतु सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं। स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम में शामिल करने से विलुप्त हो रही भाषाओं को नवीन पहचान एवं समृद्धि मिलेगी, साथ ही देश की बौद्धिक समृद्धता भी विकसित होगी।
प्राथमिक शिक्षा, शिक्षण व्यवस्था का प्रथम एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण सोपान है। फाउंडेशन को मजबूती प्रदान करने से ही शिक्षा के अन्य सोपानों में अपेक्षानुरूप परिणाम प्राप्त हो सकेंगे। इस हेतु समाज के सभी वर्गों का सक्रिय सहयोग एवं भागीदारी आवश्यक है। शिक्षा के माध्यम से ही राष्ट्र का पुनरुत्थान संभव है। आशा है कि देश के प्रत्येक नागरिकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग से भारत की गौरवशाली सनातन संस्कृति विश्व में पुनः उच्चतम पायदान पर संस्थित हो सकेगी।
(लेखक शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, रीवा (म.प्र.) में भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष है।)