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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-26 – (व्यक्ति, व्यक्तित्व और विकास)

– वासुदेव प्रजापति आजकल “व्यक्तित्व विकास” शब्द अत्यधिक प्रचलित है। अनेक व्यक्ति व संस्थान व्यक्तित्व विकास शब्द के स्थान पर “पर्सनेलिटी डेवलपमेंट” शब्द का प्रयोग करते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि ये दोनों शब्द समान अर्थ वाले हैं। पर्सनेलिटी डेवलपमेंट शब्द का प्रयोग करने में उन्हें गौरव की अनुभूति भी होती है। किन्तु […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-25 – (दूसरे वर्ष में प्रवेश)

 – वासुदेव प्रजापति “ज्ञान की बात” एक पाक्षिक स्तंभ है, जिसकी अब तक 24 कड़ियां आ चुकी हैं। अर्थात् इसे प्रारंभ हुए अब तक एक वर्ष की अवधि पूर्ण हो चुकी है। इस एक वर्ष की अवधि में हमने ज्ञान-अज्ञान को समझा। ज्ञानार्जन के साधनों कर्मेंद्रियां, ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार एवं चित्त को जाना। ज्ञानार्जन […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-24 – (दान)

 – वासुदेव प्रजापति भारतीय शिक्षा की एक प्रमुख विशेषता अर्थ-निरपेक्षता है। आज हमनें पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित होकर जीवन में अर्थ को सर्वोपरि मान लिया है। अर्थ की प्रमुखता होने से जीवन के सभी कार्य अर्थ सापेक्ष हो गये हैं। हमारे यहाँ धर्म, ज्ञान, सेवा व चिकित्सा को पैसों से श्रेष्ठ माना है। ये श्रेष्ठ […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-23 – भिक्षा (मधुकरी)

 – वासुदेव प्रजापति भिक्षा नाम सुनते ही हमारे मन में हेय भाव आता है। क्यों? इसलिए कि भिक्षा मांगने वाला बिना किसी मेहनत के और बिना किसी अधिकार के मुफ्त में कुछ प्राप्त करना चाहता है। मुफ्त में प्राप्त करने वाले को हम भिखारी कहते हैं। भिखारी का हमारे समाज में बहुत निम्न स्थान है। […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-22 (गुरु दक्षिणा)

 – वासुदेव प्रजापति भारतीय शिक्षा व्यवस्था आज की शिक्षा व्यवस्था से अनेक बातों में श्रेष्ठ है। भारत में शिक्षा का विचार अर्थ के साथ जोड़कर नहीं किया गया। जबकि आज बिना अर्थ के शिक्षा का विचार ही नहीं होता। आज की शिक्षा व्यवस्था पूर्णतया अर्थ पर निर्भर है। भारत में शिक्षा सदैव से अर्थ निरपेक्ष […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-21 (शिक्षा की अर्थ निरपेक्ष व्यवस्था)

– वासुदेव प्रजापति आज देश के गाँव-गाँव तथा गली-गली में विद्यालय खुलते जा रहे हैं। क्यों? क्योंकि हमने शिक्षा को व्यवसाय बना लिया है। आज शिक्षा खरीदने-बेचने की वस्तु बना दी गई है और उसे धन कमाने का साधन मान लिया गया है। इसलिए उसका विचार ज्ञान के सन्दर्भ में न कर केवल पैसे के […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-20 (अध्यापन)

– वासुदेव प्रजापति अध्यापन  ( पढ़ाना ) अध्ययन अर्थात् पढ़ना और अध्यापन अर्थात् पढ़ाना। पढ़ना और पढ़ाना दोनों एक ही क्रिया के दो पद हैं। इन दोनों में पढ़ना मूल क्रियापद है, जबकि पढ़ाना उसका प्रेरक रूप है। विद्यार्थी पढ़ता है और शिक्षक पढ़ाता है। बिना शिक्षक के पढ़ना तो हो सकता है, परन्तु यदि […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-19 (अध्ययन)

 – वासुदेव प्रजापति अध्ययन (पढ़ना) अध्ययन का अर्थ है, “पढ़ना”। पढ़ना और पढ़ाना या अध्ययन और अध्यापन एक ही क्रिया के दो स्वरूप हैं। हम अंग्रेजी भाषा के प्रभाव के कारण इन्हें दो क्रियापद मानते हैं। अंग्रेजी में इन दोनों पदों के लिए दो स्वतन्त्र क्रियायें हैं – “टू टीच और टू लर्न”। हमारे देश […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-18 (आचार्य और छात्र सम्बन्ध)

 – वासुदेव प्रजापति आज के समय में सामान्य व्यक्ति भी यह कहता है कि हमारे जमाने में आचार्य-छात्र सम्बन्ध जितने मधुर थे, वैसे आज नहीं हैं। हम अपने आचार्यों का बहुत अधिक सम्मान करते थे, कभी भी उनकी आज्ञा नहीं टालते थे। किन्तु आज तो ये सम्बन्ध बहुत अधिक बिगड़ गये हैं। अपने अध्यापक का […]

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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-17 (आदर्श आचार्य)

– वासुदेव प्रजापति भारतीय समाज में आचार्य का स्थान अत्यन्त आदरणीय, पूजनीय एवं श्रेष्ठ माना गया है। सभी प्रकार के सत्तावान, बलवान और धनवान व्यक्तियों से आचार्य का स्थान ऊँचा माना गया है। ज्ञान को, ज्ञानी से अज्ञानी को हस्तान्तरित करके उसे ज्ञानी बनाने की जो व्यवस्था है, वही शिक्षा है। इस शिक्षा क्षेत्र का […]