– वासुदेव प्रजापति आजकल “व्यक्तित्व विकास” शब्द अत्यधिक प्रचलित है। अनेक व्यक्ति व संस्थान व्यक्तित्व विकास शब्द के स्थान पर “पर्सनेलिटी डेवलपमेंट” शब्द का प्रयोग करते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि ये दोनों शब्द समान अर्थ वाले हैं। पर्सनेलिटी डेवलपमेंट शब्द का प्रयोग करने में उन्हें गौरव की अनुभूति भी होती है। किन्तु […]
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भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-25 – (दूसरे वर्ष में प्रवेश)
– वासुदेव प्रजापति “ज्ञान की बात” एक पाक्षिक स्तंभ है, जिसकी अब तक 24 कड़ियां आ चुकी हैं। अर्थात् इसे प्रारंभ हुए अब तक एक वर्ष की अवधि पूर्ण हो चुकी है। इस एक वर्ष की अवधि में हमने ज्ञान-अज्ञान को समझा। ज्ञानार्जन के साधनों कर्मेंद्रियां, ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार एवं चित्त को जाना। ज्ञानार्जन […]
भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-24 – (दान)
– वासुदेव प्रजापति भारतीय शिक्षा की एक प्रमुख विशेषता अर्थ-निरपेक्षता है। आज हमनें पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित होकर जीवन में अर्थ को सर्वोपरि मान लिया है। अर्थ की प्रमुखता होने से जीवन के सभी कार्य अर्थ सापेक्ष हो गये हैं। हमारे यहाँ धर्म, ज्ञान, सेवा व चिकित्सा को पैसों से श्रेष्ठ माना है। ये श्रेष्ठ […]
भारतीय शिक्षा – ज्ञान की बात-17 (आदर्श आचार्य)
– वासुदेव प्रजापति भारतीय समाज में आचार्य का स्थान अत्यन्त आदरणीय, पूजनीय एवं श्रेष्ठ माना गया है। सभी प्रकार के सत्तावान, बलवान और धनवान व्यक्तियों से आचार्य का स्थान ऊँचा माना गया है। ज्ञान को, ज्ञानी से अज्ञानी को हस्तान्तरित करके उसे ज्ञानी बनाने की जो व्यवस्था है, वही शिक्षा है। इस शिक्षा क्षेत्र का […]