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भारत में भारतीय शिक्षा को पुनर्स्थापित करने वाले : विवेकानंद – 4 जुलाई, पुण्यतिथि विशेष

 – रवि कुमार

आज शिक्षा की चर्चा सर्वत्र है । देश भर में जिस प्रकार की शिक्षा पद्धति चल रही है उसका गुरुत्व केंद्र भारत की बजाय यूरोप है । जोकि 19वीं सदी में अंग्रेजों के समय यहाँ लागू की गई और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी देश में लागू रही । अंग्रेजों के समय से अब तक भारत में भारतीय शिक्षा को पुनर्स्थापित करने के अनेक प्रयास भारत में हुए । उन प्रयासों की कड़ी में भारतीय शिक्षा का बीड़ा उठाने वाले दार्शनिकों में स्वामी विवेकानंद का नाम प्रमुख है । उन्होंने भारत में पाश्चत्य शिक्षा प्रणाली का विरोध किया और भारत संस्कृति के अनुरूप शिक्षा अपनाने का समर्थन किया । उन्होंने कहा “Education Should be Routed to culture & target to progress.” उन्होंने पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए उसकी तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिसे अपने गधे को घोड़ा बनाने के लिए खूब पिटने की सम्मति दी गई थी और व्यक्ति ने अपने गधे को घोड़ा बनाने की इच्छा से इतना पीटा की वह बेचारा मर ही गया।

स्वामी विवेकानंद जी कहते है, “इस तरह लड़के को ठोक–पीटकर शिक्षित बनाने की जो प्रणाली है, उसका अंत कर देना चाहिए । माता-पिता के अनुचित दबाव के कारण हमारे बालकों के विकास का स्वतंत्र अवसर प्राप्त नहीं होता । प्रत्येक में ऐसी असंख्य प्रवृतियाँ रहा करती है जिनके विकास के लिए समुचित क्षेत्र की आवश्यकता होती है । सुधार के लिए जबरदस्ती उद्योग करने का परिणाम सदैव उल्टा ही होता है यदि किसी को सिंह न बनने देंगे तो वह स्यार ही बनेगा । ”

स्वामी विवेकानंद जी का मानना है कि शिक्षा की व्याख्या शक्ति के विकास के रूप में की जा सकती है । बालक-बालिकाओं के मस्तिष्क में जानकारी को ठूसने के प्रयास को शिक्षा नहीं कहना चाहिए ।

शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानंद जी ने कहा, “Education is Manifestation of perfection already in the man.” शिक्षा मनुष्य में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है  ।  ज्ञान मनुष्य में निहित सिद्धांत है बाहर से कोई ज्ञान नहीं आता ।  समस्त लौकिक व आध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य के मन में है । वह आवरण द्वारा ढका रहता है ।  जब यह आवरण धीरे धीरे हटता है तो व्यक्ति कुछ न कुछ सिखता जाता है ।  जैसे-जैसे प्रक्रिया बढ़ती है वैसे-वैसे ज्ञान वृद्धि बढ़ती है ।

स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निम्न चार प्रकार के ध्येय के रूप में की जा सकती है :-

  1. व्यक्ति की आन्तरिक शक्ति को उजागर करना – व्यक्ति की आंतरिक शक्ति को बाह्य जगत में प्रकट करना है जिससे वह स्वयं को भली भांति समझे । स्वयं को समझने का पूर्ण अर्थ है मनुष्य की आत्मा का उस परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित करना, जिसका वह अंश है । इसे आध्यात्मिकता की जाग्रति भी कहा जा सकता है ।
  2. मनुष्य का निर्माण करना – व्यक्ति विशेष में मनुष्यत्व का निर्माण । मनुष्य द्वारा उन लौकिक व अलौकिक गुणों को धारण करना है जिससे वह दिव्य पुरुष बन जाए और आत्मविश्वास, आत्मश्रद्धा, आत्मत्याग, आत्म नियंत्रण , आत्मनिर्भरता एवं मानव प्रेम जैसे गुणों को आत्मसात कर लें । स्वामी विवेकानंद ने स्पष्ट रूप से कहा है कि “सभी प्रकार की शिक्षा और अभ्यास का उद्देश्य मनुष्य निर्माण ही हो ।  सारे प्रशिक्षण का अंतिम ध्येय मनुष्य का विकास करना ही है ।”
  3. मनुष्य का शारीरिक विकास करना – स्वामी विवेकानंद जी ने व्यक्ति के बलिष्ट शरीर की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा है, “सबसे पहले हमारे युवकों को सबल बनाना चाहिए । यदि तुम्हारा शरीर स्वस्थ है, अपने पैरों पर दृढ़तापूर्वक खड़े हो सकते हो, यदि तुम अपने भीतर मानव शक्ति का अनुभव कर सकते हो तो तुम उपनिषदों और आत्मा की महत्ता को अधिक अच्छी प्रकार समझा सकते है । ”

Swami Vivekanandaa also said, “You will be nearer to heaven tthrough football than through the study of The Gita.” अर्थात् गीता अध्ययन से पूर्व फुटबॉल खेल कर सबल होकर गीता को अधिक अच्छी प्रकार से समझ सकते है ।

  1. जीवन संघर्ष के लिए तैयारी – बालकों को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करना । जीवन संघर्ष की तैयारी के लिए तकनीकी एवं विज्ञान की शिक्षा आवश्यक है । स्वामी विवेकानंद जी का मानना है कोई व्यक्ति प्रकृति विरुद्ध लड़ता है तो उसमें ही चैतन्य का विकास होता है ।  स्वामी विवेकानंद जी ने गुरु और शिष्य के विषय में कहा है, “ गुरु को शिष्य की प्रवृति में अपनी सारी शक्ति लगा देनी चाहिए । सच्ची सहानुभूति के बिना हम अच्छी शिक्षा कभी नहीं दे सकते ।”  शिष्य के लिए आवश्यकता है शुद्धता ज्ञान की सच्ची पिपासा और लगन के साथ परिश्रम की । विचार वाणी और कार्यों की पवित्रतता नितांत आवश्यक है । ज्ञान पिपासा के सम्बन्ध में नियम यह है कि हम जो कुछ चाहते है, वही पाते है जिस वस्तु की अंत:करण से चाह नहीं करते वह हमें प्राप्त नहीं होती ।”

शिक्षा सभी के लिए सुलभ हो इस विषय पर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है, “If poor boy cannot come to education, education must go to him.”

उपरोक्त बिन्दुओं से ध्यान में आता है कि किस प्रकार स्वामी विवेकानन्द भारतीय शिक्षा के पक्षधर थे ।  भारतीय शिक्षा के लिए उन्होंने अनेक लोगों को प्रोत्साहित किया ।  रामकिशन मिशन की स्थापना करते हुए ‘रामकिशन मिशन विद्यालय’ के माध्यम से भारतीय शिक्षा को व्यक्त रूप देने का प्रयास किया ।  आज भी यह विद्यालय स्थापित है और भारतीय शिक्षा का प्रतिमान है ।  उनके द्वारा बताई गई भारतीय शिक्षा की संकल्पना की आज भी महत्ती आवश्यकता है ।  देशभर में अनेक संस्थाए, संगठन यथा अरविन्द आश्रम, विद्या भारती, आर्य समाज, चैतन्य मिशन, स्वामी नारायण सम्प्रदाय आदि शिक्षा में भारतीय शिक्षा की संकल्पना को व्यक्त एवं स्थापित करने में लगे है ।

Source : Rashtriya Shiksha